प्रतिरक्षा तंत्र की कोशिकाएं ( Cells of Immune System)

प्रतिरक्षा तंत्र की कोशिकाएं ( Cells of Immune System)

लसिकाणु (Lymphocyte), भक्षकाणु (Phagocyte),  ग्रैनुलोसाइट्स और डेंडरिटिक कोशिकाएं प्रतिरक्षा तंत्र की कोशिकाएं है।

इन सभी को सम्मिलित रूप से WBC (White Blood Corpuscle) या ल्यूकोसाइट कहते है।

 

 

WBC का निर्माण हेमेटोपोएटिसिस की प्रक्रिया द्वारा हेमेटोपोएटिक स्टेम कोशिका से होता है।

हेमेटोपोएटिसिस की प्रक्रिया गर्भावस्था के पहले सप्ताह के दौरान योक सेक में होता है। गर्भावस्था के तीसरे महीने के बाद हेमेटोपोएटिसिस यकृत और गर्भ के प्लीहा (Spleen) में होता है और जन्म के बाद, यह अस्थि मज्जा (Bone Marrow) में होता है।

 

प्रतिरक्षा तंत्र की कोशिकाएं

  1. लसिकाणु (Lymphocyte)
  2. भक्षकाणु या फागोसाइटिक कोशिकाएं (Phagocytic Cells)
  3. कणिकिय कोशिकाए (Granular Cells)
  4. डेन्ड्राइटिक कोशिकाएं (Dndritic Cells)

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लसिकाणु (Lymphocyte)

लसिकाणु उपार्जित प्रतिरक्षा (Aquired Immunity) की मुख्य कोशिका होती है। इनमें प्रतिजन ग्राही (Antigen Receptor) पाए जाते है।

यह रक्त, लसिका (Lymph), लसिका ग्रंथियों (Lymph Nodes), लसिका अंगों और ऊतकों में पाए जाने वाली छोटी, गोलकार कोशिकाएं है।

ये कुल श्वेत रक्त कणिकाओं (WBC) का 20 से 40% बनाते है तथा लसिका (Lymph) का 90% बनाते है।

यह शरीर में रुधिर तथा लसिका के माध्यम से संचालित होती रहती है और अन्तरकोशिकीय अवकाश तथा लसिका अंगों में गमन करती है।

कार्य और कोशिका झिल्ली के घटकों के आधार पर  लसिकाणु (Lymphocyte) को तीन भागों में विभाजित किया जाता है-

  1. टी-लसिकाणु (Lymphocyte)
  2. बी-लसिकाणु (Lymphocyte)
  3. प्राकृतिक मारक कोशिका (NK Cell)

बी-लसिकाणु (Lymphocyte)

यह प्रतिरक्षा तंत्र की कोशिकाएं एक महत्वपूर्ण कोशिका है। इनका निर्माण तथा परिपक्वन अस्थि मज्जा में होता है निष्क्रिय बी-लसिकाणु (Lymphocyte) को नाइव बी-लसिकाणु (Naive B Lymphocyte) कोशिका कहते है।

प्रतिरक्षा तंत्र की कोशिकाएं

 

जब नाइव बी-लसिकाणु का सामना किसी प्रतिजन (Antigen) से होता है तो यह विभाजित होकर संतति कोशिकाओं का निर्माण करते है।

ये संतति कोशिकाए स्मृति बी-लसिकाणु (Memorry B Lymphocyte) तथा प्लाज्मा कोशिका (Plasme Cell) में विभाजित हो जाती है

स्मृति कोशिका प्रतिजन की स्मृति को बनाए रखती है। इसकी जीवन अवधि लंबी होती है, जबकि प्लाज्मा कोशिका एंटीबॉडी का स्राव करती है इसकी जीवन अवधि कम होती है।

टी-लसिकाणु (Lymphocyte)

टी-लसिकाणु (Lymphocyte) का निर्माण अस्थि मज्जा में होता है। परंतु इसका परिपक्वन थाइमस (Thymus) में होता है।

थाइमस में टी-लसिकाणु (Lymphocyte) पर कोशिका ग्राही (Cell Receptor) का निर्माण होता है। जिनको T-Cell Receptor (TCR) कहते है।

T-Cell Receptor (TCR)  APC (antigen presenting cells) कोशिकाओं पर पाए जाने वाले MHC अणु से जुड़े हुए प्रतिजन को पहचानने का कार्य करते है।

प्रतिरक्षा तंत्र की कोशिकाएं

 

जब T-Cell Receptor किसी प्रतिजन की पहचान कर लेता है। तो यह टी-लसिकाणु (Lymphocyte) विभाजित होकर तीन प्रकार की कोशिकाओं का निर्माण करती है।

टी-सहायक कोशिका (TH–T-Helper Cell)

टी-मारक कोशिका (TC –T Cytotoxic Cell)

टी-स्मृति कोशिका (T Memory  Cell)

टी-सहायक कोशिका (TH–T-Helper Cell) में  CD4 तथा टी-मारक कोशिका (TC –T- Cytotoxic Cell) CD 8 ग्राही/ रिसेप्टर पाए जाते है, जो ग्लाइकोप्रोटीन के बने होते है।
टी-सहायक कोशिका के द्वारा B कोशिका को सक्रिय करने का कार्य किया जाता है जबकि टी-मारक कोशिका द्वारा प्रतिजनों (Antigen) को मारने का कार्य किया जाता है।

प्राकृतिक मारक कोशिका (NK Cell)

एक वृहद कणिकिय है जो शरीर में बनने वाली ट्यूमर कोशिकाओं को मारने का कार्य करती है।

यही कारण है कि कुछ लोगों को धूम्रपान करते हुए समय हो गया लेकिन उनको कैंसर नहीं हुआ। यह सहज प्रतिरक्षा तंत्र (Innante Immunity) का भाग है।

भक्षकाणु (Phagocytic Cell)

मैक्रोफेज और मोनोसाइट्स  एककेन्द्रीय (Mononuclear) भक्षकाणु कोशिकाएं है। जो भक्षण (Phagocytosis) प्रक्रिया द्वारा रोगाणुओं को मारती है।

मोनोसाइट्स

मोनोसाइट्स एक एकल पालित, वृक्क के समान आकार वाले केन्द्रक युक्त कोशिका है। इसका आमाप 12-15 माइक्रोन होता है।

यह रक्त ल्यूकोसाइट्स का 2-8% भाग बनाते है।

इनका निर्माण अस्थि मज्जा में कणिकिय-मोनोसाइट अग्रगामी कोशिका (ग्रेन्युलोसाइट-मोनोसाइट प्रोजेनिटर सेल) से होता है।

ग्रेन्युलोसाइट-मोनोसाइट प्रोजेनिटर कोशिका के विभाजन से प्रोमोनोसाइट्स और न्यूट्रोफिल बनते है।

प्रोमोनोसाइट्स अस्थि मज्जा को छोड़ देते है। और रक्त प्रवाह में प्रवेश करते है। जहां वे परिपक्व होकर मोनोसाइट्स में रूपांतरित हो जाते है।

मोनोसाइट्स लगभग 8 घंटे तक रक्त में संचरण करता रहता है, फिर ऊतकों में प्रवेश करके मैक्रोफेज और डेंडरिटिक कोशिकाओं में परिवर्तित हो जाता है।

मैक्रोफेज (वृहद भक्षकाणु)

मोनोसाइट ऊतक में जाकर मैक्रोफेज में रूपांतरित हो जाता है। मैक्रोफेज मोनोसाइट्स की तुलना से 5-10 गुना बढ़े होते है, इनमें हाइड्रोलाइटिक एंजाइमों और साइटोकाइन का स्तर बढने के कारण इनकी भक्षकाणु क्षमता (फागोसाइटिक क्षमता) में वृद्धि हो जाती है।

मैक्रोफेज विभिन्न ऊतकों में विभिन्न प्रकार के कार्यों करती है।

मैक्रोफेज अलग-अलग ऊतकों में अलग-अलग नाम से जानी जाती है, जो निम्न है –

  1. आहरनाल में आंत्रिय मैक्रोफेज (Intestinal macrophage in the gut)
  2. फेफड़े में एलोवीयल मैक्रोफेज (Alveolar macrophage ijn the lung)
  3. संयोजी ऊतक में हिस्टियोसाइट (Histiocytes in connective tissue)
  4. यकृत में कुफर कोशिका (Kufffer cells in the liver)
  5. वृक्क में मैसेन्जियल कोशिका (Mesangial cells in kidney)
  6. मस्तिष्क में माइक्रोग्लियल कोशिका (Mircoglial cells in brain)
  7. हड्डीयों में ऑस्टियोकास्ट (Osteoclasts in bone)

 

कणिकिय कोशिकाए (Graulocytic cells)

प्रतिरक्षा तंत्र की कोशिकाएं

 

न्यूट्रोफिल (Neutrophil)

न्यूट्रोफिल का व्यास 11-14μm होता है। इसमें कई पालियो में बंटा हुआ केन्द्रक (बहुपालित केन्द्रक-Multilobed Nucleus) होता है।

इसलिए इनको बहुरूप केन्द्रक श्वेताणु उदासीनरंजी (PMNL-Polymorphic Nuclear Leucocyte) कहते है।

इनके जीवद्रव्य में कण पाए जाते है इसलिए ये कणिकिय कोशिकाए होती है।

यह कुल WBC का 50-70%  होती है। यह रक्त में 7-8 घंटे तक रहती है। और फिर ऊतकों में गमन कर जाती है।

इनकी जीवन अवधि 3-4 दिन होती है।

न्यूट्रोफिल दोनों अम्लीय और क्षारकीय अभिरंजक द्वारा अभिरंजित होने के कारण न्यूट्रोफिल कहलाती है। ( Neutro – उदासीन )

यह फागोसाइटिक कोशिका है जो सूजन (Inflammation) में प्रतिक्रिया देने वाली पहली प्रतिरक्षा कोशिका है।

ईओसीनोफिल (Eosinophil)

ईओसीनोफिल का व्यास में 11-15μm होता है। इनमें द्विपालित केन्द्रक (Bilobed Nucleus) होता है।

ये भी न्यूट्रोफिल की तरह कणिकिय कोशिकाए है। यह अम्लीय अभिरंजक ईओसिन द्वारा अभिरंजित होने के कारण ईओसीनोफिल कहलाती है।(Phill – स्नेह)

यह कोशिका फागोसाइटिक होती है।

ईसीनोफिल के जीवद्रव्य में पाए जाने वाले कणों (Granules) में विभिन्न प्रकार हाइड्रोलाइटिक एंजाइम होते है, जो ऐसे परजीवी को मारते है, जो न्यूट्रोफिल द्वारा भक्षण होने के लिए बहुत बड़े होते है।

बेसोफिल (Basophil)

बेसोफिल रक्त और ऊतक में  कम संख्या में पाए जाने वाली कणिकिय कोशिकाए है। लेकिन ये ईओसीनोफिल व न्यूट्रोफिल की तरह भक्षकाणु नहीं है।

साइटोप्लाज्म में बड़ी मात्रा में प्रमुख बेसोफिलिक ग्रैन्यूल (क्षारस्नेही कण) होते है।

जिनमें हिस्टामाइन, हेपरिन, सेरोटोनिन और अन्य हाइड्रोलाइटिक एंजाइम होते है।

हिस्टामाइन, हेपरिन, सेरोटोनिन एलर्जी के लिए उत्तरदायी होते है।

क्षारकीय अभिरंजक मीथाइलीन ब्लू द्वारा अभिरंजित होने के कारण ये बेसोफिल कहलाती है। (Base- क्षार)

डेंडरिटिक कोशिका (Dendritic cells)

इन कोशिकाओं की कोशिका झिल्ली पर जीवद्र्व्यी उभार (Dendrites – साइटोप्लाज्मिक एक्सट्रेशन) पाए जाने के कारण इनको डेंडरिटिक कोशिका कहते है,

ये उभार जो तंत्रिका कोशिका के डेंडर्राइट के समान होते है।

डेंडरिटिक कोशिकाएं Apc कोशिकाए है क्योंकि इन कोशिकओं पर MHC अणु होते है।

ये कोशिकाए प्राथमिक प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया के दौरान टी-कोशिकाओं को एंटीजन प्रस्तुत करने का कार्य करते है।

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